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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
उस जगह सरहदें नहीं होतीं
जिस जगह ऩफरतें नहीं होतीं

उसका साया घना नहीं होता
जिसकी गहरी जड़ें नहीं होतीं

बस्तियों में रहें कि जंगल में
किस जगह उलझनें नहीं होतीं

मुँह पे कुछ और पीठ पे कुछ और
हमसे ये हरकतें नहीं होतीं

रास्ते उस तऱफ भी जाते हैं
जिस तऱफ मंज़िलें नहीं होतीं
</poem>