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ललित ललामी है रवि की,
सुखद सलामी है छवि की,
ऋतुराज ।
सौंधी-सौंधी बहे समीर,
चहकत चिरियाँ पिक अस्र् कीर,
ऋतुराज ।
तरु बन्दहि सोभा सम्पन्न,
नाहिं बिपिन हैं आज विपन्न,