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Kavita Kosh से
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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कब्बे मरल रहतूँ हल हमरा जिअइले हे आशा।आशाबोल भइबा-बोल बहिनी जय-जय-जय मगही भाषा।भाषाकोय दगाबाज हे कोई रंगबाज।रंगबाजकोय-कोय सीधा कोय जादे बदमाश।बदमाशझूठे के हमरा देहे सब कोय दिलाशा।। दिलाशाबोल भइबा ....मगही-मइया के हे चार करोड़ बेटबा।बेटबाकोय कमजोर हे बाँधे कोय फेटबा।फेटबाहे जे बरिआर जादे उहे देहे झाँसा।। झाँसाबोल भइबा ....तोता बोले राम-राम चिहुँके हे मोरबा।मोरबाकोय बइमान भेल कोय भेल चोरबा।चोरबाहोल जे बेसरमी जीते उहे पासा।। पासाबोल भइबा .....
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