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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
डगर ज़िन्दगी की सरल बन गयी
है मुश्किल स्वयं आज हल बन गयी
दिया हम ने प्याला था पीयूष का
सुधा बूँद थी क्यो गरल बन गयी
जो ईमानदारी का भरता था दम
कुटी कैसे उस की महल बन गयी
झरोखे सभी बन्द अब खुल गये
नयी रौशनी की पहल बन गयी
उठाया था साहस ने पहला कदम
हिमालय की चोटी तरल बन गयी
</poem>
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|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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डगर ज़िन्दगी की सरल बन गयी
है मुश्किल स्वयं आज हल बन गयी
दिया हम ने प्याला था पीयूष का
सुधा बूँद थी क्यो गरल बन गयी
जो ईमानदारी का भरता था दम
कुटी कैसे उस की महल बन गयी
झरोखे सभी बन्द अब खुल गये
नयी रौशनी की पहल बन गयी
उठाया था साहस ने पहला कदम
हिमालय की चोटी तरल बन गयी
</poem>