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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सीख लो अब पीर में भी मुस्कुराना
जिंदा रहने का मिले कोई बहाना
जिंदगी कर ले भले ही बेवफ़ाई
तुम मगर अपनी वफ़ा को मत भुलाना
आईना हर बार है ये ही सिखाता
देख खुद को फिर किसी को आजमाना
लोग बारम्बार तुम को आजमायें
तुम बिना सोचे न पर उँगली उठाना
जीस्त की जिंदादिली मिटने न पाये
तुम कभी इस बात को मत भूल जाना
</poem>
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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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सीख लो अब पीर में भी मुस्कुराना
जिंदा रहने का मिले कोई बहाना
जिंदगी कर ले भले ही बेवफ़ाई
तुम मगर अपनी वफ़ा को मत भुलाना
आईना हर बार है ये ही सिखाता
देख खुद को फिर किसी को आजमाना
लोग बारम्बार तुम को आजमायें
तुम बिना सोचे न पर उँगली उठाना
जीस्त की जिंदादिली मिटने न पाये
तुम कभी इस बात को मत भूल जाना
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