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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
शारदे माँ के चरण में सिर झुकाना चाहिए.
हो कृपा उसकी सदा ऐसे मनाना चाहिए

युगल चरणों में उसी के भाव के भंडार हैं
एक कण उसका मिले मस्तक लगाना चाहिए

माँ तुम्हारे वरद पुत्रों की दशा दयनीय है
अब तुम्हें भी प्यार की सरिता बहाना चाहिए

श्वेत सरसिज पर विराजी शुभ्र वसना शारदा
प्रेम श्रद्धा से उन्हें निशि दिन रिझाना चाहिए

व्यर्थ की कर बतकही मत दिन बिताओ साथियों
हम सभी को काव्य सरिता में नहाना चाहिए

</poem>