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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
माँ शारदे तुम्हारी ही भक्ति है सुहाती
है गीतिका तुम्हारी यश से भरी लुभाती

हे माँ चरण तुम्हारे मेरे हृदय में बसते
यश कीर्ति माँ तुम्हारी मन को हमारे भाती

माँ आज आ समाओ सब के हृदय विपिन में
कब तक रहोगी वन में यूँ ज्ञान धुन बजाती

मन यह बिना तुम्हारे वीरान हो रहा है
सुनसान विश्व रहता तुम यदि न गुनगुनाती

अब आ भी जाओ माता आ लेखनी विराजो
है यह सुता तुम्हारी विश्वास से बुलाती

</poem>