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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
न जाने लोग क्यों ऐसे अनोखे काम करते हैं
जमाने भर में अपने देश को बदनाम करते हैं

बहारों से ज़रा पूछो कि किस से है खता खाई
बिना कारण विचारे पतझरों का नाम करते हैं

भुलाये हैं सभी वादे कसम भी तोड़ है डाली
कबूतर भेज कर फिर किसलिए पैगाम करते हैं

हमारी राह में बढ़कर बिछा जाते हैं जो काँटे
किसी दुश्मन के सिर पर क्यों भला इल्ज़ाम करते हैं

ठिठक कर रह गई हैं आज तूफ़ानी हवाएँ भी
जहाँ डूबी मेरी कश्ती लहर ईनाम करते हैं

</poem>