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<poem>

कब कहाँ किस को दग़ा दे जानता कोई नहीं
ज़िंदगी सी बेमुरव्वत बेवफा कोई नहीं

दिल कहीं पत्थर न हो जाए बस इतना याद रख
ये वो पत्थर है कि जिस को पूजता कोई नहीं

बेअसर हैं तेरी आहें उस पे तो हैरत न कर
पत्थरों का फूल से क्या वास्ता कोई नहीं

भूल तो हर शख़्स से मुमकिन है हम हों आप हों
क्यूँ कि हम सब आदमी हैं देवता कोई नहीं

नफ़्सा नफ़्सी हर तरफ है कौन किस का है यहाँ
ए ख़ुदा तेरे सिवा अब आसरा कोई नहीं

बेखुदी का राज़ बतलाते हैं तुम को आज हम
हम ने उस को पा लिया जिस का पता कोई नहीं

दूर रहता है निगाहों से मेरी फिर भी सुमन
ज़हन ओ दिल में वो ही वो है दूसरा कोई नहीं।

</poem>