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<poem>
वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे
गिरना भी है पर औ'र संभलना है तुझेअर्श<ref>छत या सर्वोच्च</ref> से फिर फर्श पर भी आना हैआब<ref>पानी</ref> की शय में बदलना है तुझे 
इज़्तिराब-ए-ग़म<ref>ग़म की चिंंता</ref> नहीं करना है अब
जीना है ख़ुद के लिए जीना है अब