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Kavita Kosh से
हम बहुत अकेले हैं
क़िस्मत के हाथों
उजड़े हुए ये मेले हैं।
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साथ रहें बेगाने
बूँद तुम्हारी हूँ
तुझसे ही लूँ फेरे।
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