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वसन्ती भोर में
सूर्य की सुनहरी रश्मियों में
तुम नहा रही हो
अपने में मगन
सुनहले पाँव ...
मनोहर ग्रीवा — स्कन्ध
कितने प्यारे
कितने मनहर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[सुधीर सक्सेना]]'''
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