भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चारों तरफ
है घनेरा जंगल
कहाँ हो तुम।तुम!
106
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ न तुम।तुम!
107
अँजुरी भर
पिलादो प्रेमजल
प्राण कण्ठ में।में!
108
शब्दों से परे
पुकारूँ कैसे !
109
'''भूलूँ कैसे मैं
तेरा वो सम्मोहन
कसे बन्धन।'''
110
तन माटी का
अरसा हुआ देखे
छिना है चैन।
112
देह नश्वर
देही, प्रेम अमर
मिलेंगे दोनों।
 
-0-
<poem>