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Kavita Kosh से
चारों तरफ
है घनेरा जंगल
कहाँ हो तुम।तुम!
106
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ न तुम।तुम!
107
अँजुरी भर
पिलादो प्रेमजल
प्राण कण्ठ में।में!
108
शब्दों से परे
पुकारूँ कैसे !
109
'''भूलूँ कैसे मैं
तेरा वो सम्मोहन
कसे बन्धन।'''
110
तन माटी का
अरसा हुआ देखे
छिना है चैन।
112
देह नश्वर
देही, प्रेम अमर
मिलेंगे दोनों।
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