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116रहे उम्र भर संग में , मन से कोसों दूर।साथ हुए ना दो घड़ी,किसका कहें क़ुसूर।।117'''पढ़ी हथेली आपकी''' ,जाना अपना भागहर रेखा के छोर तक, उमगा था अनुराग।118बालसुलभ मुस्कान में, छपे हज़ारों गीत ।सब गीतों का सार था, ‘तुम मेरे मन मीत’॥119 ग़म की चादर फेंक दो , जब अपने हों साथ।तन -मन जब डगमग करे,कसकर पकड़ो हाथ।120कुछ भी तो माँगा नहीं, न धन, नहीं सम्मान।उनके अधरों पर खिले,सदा मधुर मुस्कान।।121जीवन की मरुभूमि में,जब बरसे अंगार।मुझे बचाने आ गए, बन तुम सुखद बयार।।122रोम- रोम को सींचती, वाणी की जलधार।वासन्ती हर पल हुआ,पाकर तेरा प्यार।।123घिरी घटाएँ ताप की,बाँधो ऐसी डोर।प्रभुवर ! मेरे प्रेम को,देना सुखमय भोर ।।124हर लेना हर पीर को,सुख ले आना पास।शीतल मन -मंदिर करो,तुम पर ही विश्वास।। 125धन, दौलत माँगा नहीं , न यश , नहीं सम्मान।देना मन के मीत को ,केवल सुख का दान।।126नर -नारी के भेद से,ऊपर होता प्यार।भोर- साँझ सब एक हैं,उजियारे के द्वार।127खुशबू हर पल आ सके,खोले थे सब द्वार।पत्थर बरसे हर घड़ी,घायल हर मनुहार।।128जब तक तन में प्राण हैं,जीवन की है आस।सभी द्वार पर बाँटना,सब दिन हमें उजास।।129पुर्ज़ा-पुर्ज़ा ज़िन्दगी,होती है दिन रात ।तुम बोलो कितना सहें,हर पल के आघात।।130निर्मल नाज़ुक काँच-सा,अपना मन था यार।सहता कैसे हर घड़ी, पाषाणों के वार।।
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