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एक साथ छनक उठेंगी ।।
तुम लौटोगे तो लौट आएँगी पोलई<ref>धान की मिंडाई के बाद जब कुछ विशिष्ठ विशिष्ट जातियों के लोग तथा चरवाहे खेत मालिक के घर जाते हैं तब उन्हें भेंट के रूप में धान दिया जाता है। बस्तर में हल्बी-भतरी परिवेश आदिवासियों के बीच यह प्रथा प्रचलित है ।</ref> की खुशियाँ
एक बार फिर धोरई बाँधेगा बैलों को गोठान में
जेठा और चुई पहनाकर
तुम्हारी खोई हुई हंसी के दानों को
स्मृति-चिन्ह के स्तम्भ में एक-एक कर चिपका रहे हैं
खलिहान को मस-डाण्ड<ref>खलिहान में रखे गए धान को कोई चुरा न ले इसलिए कोयले से खलिहान के चारों तरफ़ पूजा करके लकीरें खींच दी जाती हैं ।हैं।</ref> से घेरने के बाद भी वहाँ
दुख की पकी फ़सल का ढेर लगने लगा है ।
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