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|रचनाकार=स्तेफान स्पेन्डर |अनुवादक=अनिल एकलव्य
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बंदूकें बन्दूकें धन के अंतिम अन्तिम कारण के हिज्जे बताती हैंबसंत बसन्त में पहाड़ों पर सीसे के अक्षरों में
लेकिन जैतून के पेड़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का
अभी बच्चा ही था और बहुत अनाड़ी भी
उनकी महती आँखों के ध्यान में आने के लिए।लिए ।वो तो चुंबन चुम्बन के लिए बेहतर निशाना था।था ।
जब वो ज़िंदा ज़िन्दा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया।बुलाया ।ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अंदर ले अन्दर लेने के लिए।लिए ।उसका नाम कभी अखबारों अख़बारों में नहीं आया।आया ।दुनिया ने अपनी पारंपरिक पारम्परिक दीवार बनाए रक्खी
मृतकों के चारों तरफ़ और अपने सोने को भी गहरे दबाए रक्खा,
जबकि उसकी ज़िंदगीज़िन्दगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही।रही ।
अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पंखुड़ियाँ फेंकीं।पँखुड़ियाँ फेंकीं ।फूलहीन दीवार से बंदूकें बन्दूकें फूट पड़ीं,मशीन गन मशीनगन के गुस्से ने सारी घास काट डाली;झंडे झण्डे और पत्तियाँ गिरने लगे हाथों और शाखों से;ऊनी टोपी बबूल में सड़ती रही।रही ।
उसकी ज़िंदगी ज़िन्दगी पर गौर ग़ौर करो जिसकी कोई कीमत क़ीमत नहीं थीरोज़गार में, होटलों के रजिस्टर में, खबरों ख़बरों के दस्तावेज़ों मेंगौर करो। ग़ौर करो । दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है।है ।पूछो। पूछो । क्या इतना खर्चा जायज़ थाइतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी ज़िन्दगी परजो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत?
'''मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य
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