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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
आग में जलती सियासत को हवा मत दीजिये
आदमीयत को बचाना है भुला मत दीजिये।

हाथ में बारूद ले जो अम्न की करते हैं बात
कर यकीं उन पर कभी गुलशन जल मत दीजिये।

ये सियासत-दां हैं जो कहते हैं सो करते नहीं
इनके हाथों में कभी खुद को थमा मत दीजिये।

वक़्त की जो मार से अपना तवाज़ुन खो चुका
आप ऐसे शख्स को कोई सज़ा मत दीजिये।

आदमी तो आदमी है गुलसितां होंगी हज़ार
भूल गलती पर किसी को बद्दुआ मत दीजिये।

इश्क़ है ये इश्क़ में तो हार में ही जीत है
यार है जो आपका उसको हरा मत दीजिये।

मां क़सम यूँ आपकी बातों की क़ीमत कुछ नहीं
मुफ्त में अपना किसी को मशवरा मत दीजिये।
</poem>
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