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<poem>
हद से बाहर निकल भी सकती है
आग पानी पे चल भी सकती है

अस्ल किरदार मर चुके हैं सब
अब कहानी बदल भी सकती है

प्यास इस दर्जा है लबों पे मिरे
एक दरिया निगल भी सकती है

उन दरख़्तों के साये में हूँ, मैं
जिनसे आँधी निकल भी सकती है

बे-वजह मैं उदास रहने लगा
फ़ैसला वो बदल भी सकती है

बात दिल की है जानता हूँ 'वीर'
'हां' मगर बात टल भी सकती है

</poem>