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{{KKRachna
|रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
"तुम्हारे ख़्वाब सजाते-सजाते;
मौत ना आई मुझको;
उन ख़्वाबों में से मिरा इक ख़्वाब,
मौत भी था;
तुमसे मिलकर लगा कि सब-कुछ
बहुत अच्छा होगा;
तुमसे बिछड़ेंगे भी;मगर
ये तो सोचा ही नहीं था."
</poem>
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"तुम्हारे ख़्वाब सजाते-सजाते;
मौत ना आई मुझको;
उन ख़्वाबों में से मिरा इक ख़्वाब,
मौत भी था;
तुमसे मिलकर लगा कि सब-कुछ
बहुत अच्छा होगा;
तुमसे बिछड़ेंगे भी;मगर
ये तो सोचा ही नहीं था."
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