भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
वेदनाएं कह रही हैं
व्यर्थ ये मौसम नहीं हैं
तुम हमारा ग़म नही हो
हम तुम्हारा ग़म नहीं हैं

प्रेम की पाती में धरकर, प्रेम के हम फूल लाये
प्रेम के माथे से चुनकर,चुटकीभर हम धूल लाये
दो क़दम चल दो अगर तुम
एक जां हो जाएं हम तुम

दूरियाँ ये कह रहीं हैं
फाँसले भी कम नहीं हैं
तुम हमारा ग़म नहीं हो
हम तुम्हारा ग़म नहीं हैं

आँख भी कब से हमारी
आँसुओं में गल रही हैं
स्मृतियाँ आँखों के आगे
बस, तुम्हारी चल रही हैं
क्या हमें ये हो गया है
जग ही सारा खो गया है

यातनाएं कह रही हैं
मुश्किलें भी कम नहीं हैं
तुम हमारा ग़म नहीं हो
हम तुम्हारा ग़म नहीं हैं

नाम सुनकर धमनियों में वेग बढ़ता जा रहा है
औ' लहू का एक कतरा दूजे से टकरा रहा है
धरती, अम्बर सब दिशाएं
गुम हैं मुझमें तारिकाएं

तारिकाएं कह रहीं हैं
दुःख तुम्हारे कम नहीं हैं
तुम हमारा ग़म नहीं हो
हम तुम्हारा ग़म नहीं हैं



<//poem>