भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लख वृंदावन भाग, मोहन खेलत फाग।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
डारे झगा अजानु, लली लखत वृषभानु।
केशव करत किलोल, बाजत हैं ढप ढोल॥
त्याग दई सब लाज, रंग लिए कर आज।
दौड़त हैं हर छोर, भीगे बदन किशोर॥
मन मा उठत सवाल, देखि ढंग सब ग्वाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
डारे घूँघट माथ, ले मटकी दधि हाथ।
राधा सखियन संग, देख रही हुडदंग॥
लिए ग्वाल तब घेर, लगी न पल भर देर।
भागी बच पुरजोर, फगुअन का सुन शोर॥
राधा भाग निढाल, पूछो नहीं हवाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
कान्हा ने बरजोर, मटकी दी धर फोर।
और छोर पिचकार, रंग दिया सब डार॥
भीज गए सब अंग, चोली चूनर संग।
अद्भुत माधव रंग, जागी अजब उमंग॥
किये लाल सब गाल, निर्लज बहुत गुपाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लख वृंदावन भाग, मोहन खेलत फाग।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
डारे झगा अजानु, लली लखत वृषभानु।
केशव करत किलोल, बाजत हैं ढप ढोल॥
त्याग दई सब लाज, रंग लिए कर आज।
दौड़त हैं हर छोर, भीगे बदन किशोर॥
मन मा उठत सवाल, देखि ढंग सब ग्वाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
डारे घूँघट माथ, ले मटकी दधि हाथ।
राधा सखियन संग, देख रही हुडदंग॥
लिए ग्वाल तब घेर, लगी न पल भर देर।
भागी बच पुरजोर, फगुअन का सुन शोर॥
राधा भाग निढाल, पूछो नहीं हवाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
कान्हा ने बरजोर, मटकी दी धर फोर।
और छोर पिचकार, रंग दिया सब डार॥
भीज गए सब अंग, चोली चूनर संग।
अद्भुत माधव रंग, जागी अजब उमंग॥
किये लाल सब गाल, निर्लज बहुत गुपाल।
नभ पर रहे उछाल, रंग अबीर गुलाल॥
</poem>