भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
जग जननी माँ , भाव की भूखीमेरे भाव का पान करो। करो । दर्शन दो संताप सन्ताप हरो , माँ!अटल भक्ति का दान करो। करो ।
जग जननी माँ...॥
भोग -वस्तु मैं दे नहीं पाता, कारण की पहचान करो। करो । बड़े भक्त जय-यश पाते हैं-— मुझ छोटे का भी ध्यान धरो॥धरो ॥
जग जननी माँ ...॥
कितनी बार मैं माँ कहता हूँ
बेटा तू तुम एक बार कहो, जीवन सुफल सफल बना दे , हे मैया! स्वर मेरा स्वीकार करो॥करो ॥
जग जननी माँ ...॥
</poem>