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Kavita Kosh से
वे बस कुछ रंगीन बिम्बों की तलाश में थे
भक्ति काल में मीरा लिख गयीं - राणाजी म्हाने या बदनामी लगे मीठी।
कोई निन्दो कोई बिन्दो, मैं चलूंगी चाल अपूठी...
1930 में महादेवी के शब्द थे - विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना... 1990 में लिखती हैं अनामिका -
हे परमपिताओं,
परमपुरुषों–
2018 में यह पंक्तियाँ लिखते
मैं आपके लिए तहेदिल से चाहती हूँ ' ग्रो अप एन्ड मूव ऑन '
और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए
20 ....लिख कर रिक्त स्थान छोड़ती हूँ
उम्मीद करती हूँ कि अब कोई नयी बात लिखी जाए!
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