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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=जूझते हुए जिजीविषा / महेन्द्र भटनागर
}}
लड़खड़ाते पाँव हैं, सूनी डगर<br>
झूम आगे चल रहा हूँ मैं मगर !<br><br>