भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन बस अपना होता है / मानोशी

179 bytes removed, 03:56, 26 अगस्त 2019
<poem>
जीवन बस अपना होता है,तोड़ कर सब वर्जनाएँअपने ही सँग जीना सीखो॥स्वप्न सारे जीत लेंगे एक दिन हम ।।
जब-जब आशा के पौधोँ कोराह में जो धूल की सींचा मैँने बडे जतन सेआँधी उड़ी, फूल खिलेँगेक्या पता क्यों समय की धारा मुड़ी, मोती देँगेमंज़िलों के रास्ते भी थे ख़फ़ा,सपना बोया बहुत लगन सेसाथ में फिर और कठिनाई जुड़ी,माली ने निष्ठुरता से यूँपर क्षितिज के पार खिलती अधखिलती कलियों रोशनी को काटारँगहीन था रक्त बहा जोलेकिन क्या परवाह किसी को॥भी वरेंगे एक दिन हम ।।
नई-पुरानी छोटी-छोटीदेखते ही देखते बूँदों से कुछ बादल जोडेयुग बीतता,कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,बूँद-बूँदों समय का घटझिलमिल रातें, सपने ओढ़े रीतता,सोचा छू लूँ, पँख लगा काट करसब बंध सारी कामना,ऐसी आँधी चली अचानकलक्ष्य हो ध्रुव जबसावन बरसा पर तरसा तभी मन जीतता, त्याग करझूठे सहारे,आवरण तम का हरेंगे फिर से प्यासा रखा नदी को॥एक दिन हम ।।
हम हैं ज़िंदगी की राह में ठोकर मिले,जो बुनते अनदेखेरहे मन में वही सब आशंकाओं के जालेमन को छिले,हम ही होते शत्रु स्वयं केलड़खड़ाए थे क़दम अपने से ही चलते चालेंइक पल मगर,तेज़ धार में समझबूझ फिर चले हँस करदे देते पतवार नाव कीमिटा कर हर गिले,गहरे जल के हिचकोलों मेंरात कितनी हो अंधेरीदोषी ठहराते माझी को॥सूर्य रथ पर भी चढ़ेंगे  जीवन बस अपना होता है,अपने ही सँग जीना सीखो॥एक दिन हम ।।
</poem>