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Kavita Kosh से
बस इतना ही करना कि
मेरे अचेतन मन में जब तुम्हारे होने का भान उठे
और मैं तुम्हे तुम्हें निःशब्द पुकारने लगूँ
तुम मेरी पुकार की प्रतिध्वनि बन जाना
स्मृति की वादियों में जब ठंडी गुबार उठे
और मेरे प्रेम का बदन ठिठुरने लगे
तुम मेरे दीपक कि की लौ में समा जाना
बस इतना ही करना कि