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तप्त मरुथल में क्षुधा के
चौंधियाती चिलचिलाती धूप होगी
तौलती पौरुष मनुज का
मृगतृषा बहु-रूप होगी
घोष "सच हरिनाम" के संग
कारवाँ बढ़ता रहेगा
 
इन मसानों का धुआँ
यूँ ही सतत चढ़ता रहेगा
 
पालने नित सोहरों के
साथ डाले भी रहेंगे
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