भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हड्डियों के कटोरे में धँसी हुई आँखें
शून्य में गोता लगाती हैं,
और कुरूप हो उठते है हैं
आश्वासनों के कीचड़ में उगे
स्वप्नों के सुन्दर चेहरे।