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प्रीति / रामधारी सिंह "दिनकर"

No change in size, 14:53, 15 नवम्बर 2019
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<poem>
::::[१]
प्रीति न और्ण अरुण साँझ के घन सखि!
::पल-भर चमक बिखर जाते जो
::मना कनक-गोधूलि-लगन सखि!