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{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
रावण नै
बाळणो सईकां स्यूं
चालतौ आयौ
रिवाज है
सालीणा ईं दिन लाखूं
फोरी रावण बळै
करोड़ू लोगां री साखी में
पण
ईं समाज मांय
ईं मानखै मांय
छिप्या बै असली रावण !
जिका नित करै है
बिंया ई सीतावां रौ हरण
दिन दहाड़े
साव चौघड़दै !
बाळीज्या है कदै बै रावण !
</poem>
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रावण नै
बाळणो सईकां स्यूं
चालतौ आयौ
रिवाज है
सालीणा ईं दिन लाखूं
फोरी रावण बळै
करोड़ू लोगां री साखी में
पण
ईं समाज मांय
ईं मानखै मांय
छिप्या बै असली रावण !
जिका नित करै है
बिंया ई सीतावां रौ हरण
दिन दहाड़े
साव चौघड़दै !
बाळीज्या है कदै बै रावण !
</poem>