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जागो / महेन्द्र भटनागर

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<poem>

:जागो, हे जीवन जागो !

:कूल बढ़े हैं नदियों के,
:सोये जागे सदियों के,
:मूक-व्यथाएँ खो जाएँ ;
::बंदी युग-यौवन जागो !

:उत्सर्ग भरे गानों से,
:प्राणों के बलिदानों से
:त्रस्त-मनुज के उद्धारक ;
::हे नवयुग के मन जागो !

:चंचल चपला के उर में,
:ज्वालागिरि के अंतर में,
:जो हलचल ; उसको लेकर ;
::जगती के कण-कण जागो !
: 1944
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