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{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका
|संग्रह=दूब-धान / अनामिका अनुष्टुप / अनामिका
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उतरते हुए जाड़े की
हल्की-सी सिहरन में
उत्फुल्ल थे।
सड़क पर निकल आए थे खटोले।
पिटे हुए दो बच्चे
गले-गले मिल सोए थे एक पर–
दोनों के गाल पर ढलके ढलक आए थे
एक-दूसरे के आँसू।
हम घर के आगे हैं कूड़ा–
फेंकी हुई चीजें चीज़ें भीखूब ख़ूब फोड़ देती हैं भांडा
घर की असल हैसियत का !