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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:मूक जीवन के अँधेरे में, प्रखर अपलक
:जल रहा है यह तुम्हारी आश का दीपक !
:ज्योति में जिसके नयी ही आज लाली है
:स्नेह में डूबी हुई मानों दिवाली है !
:दीखता कोमल सुगन्धित फूल-सा नव-तन,
:चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन !
:याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक,
:यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक !
:1948
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:मूक जीवन के अँधेरे में, प्रखर अपलक
:जल रहा है यह तुम्हारी आश का दीपक !
:ज्योति में जिसके नयी ही आज लाली है
:स्नेह में डूबी हुई मानों दिवाली है !
:दीखता कोमल सुगन्धित फूल-सा नव-तन,
:चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन !
:याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक,
:यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक !
:1948
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