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एकाकीपन / महेन्द्र भटनागर

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:यह आज अकेलेपन पर तो
:मन अकुला-अकुला आता है !

:सुनसान थका देता मन को,
:एकांत शिथिल करता तन को,
:अब और नहीं एकाकीपन
:जीवन के साथ रहे प्रतिक्षण,
::यह उलझा-उलझा-सा यौवन
::अब तो भार बना जाता है !

:कब तक सूनी राह रहेगी ?
:कब तक प्यासी चाह रहेगी ?
:इतनी काली सघन निशा में
:चलना कब तक एक दिशा में ?
::यह रुका हुआ जीवन, उर में
::भाव निराशा के लाता है !
:1949
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