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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:यह युगों की साधना का
:आज क्या परिणाम है ?
:मैं तुम्हारे रूप का साधक
:जोहता शोभा सदा अपलक,
:पर, गया मिट सुख-सबेरा
::ज़िन्दगी की शाम है !
:स्वप्न में तुमको बुलाया था,
:कक्ष अंतर का सजाया था
:पर, युगों से स्नेह-निर्झर
::बह रहा अविराम है !
:श्रवण आहट पर टिके मेरे,
:नयन-युग पथ पर झुके मेरे,
:पर, नहीं आभास तक का
::आज किंचित नाम है !
:1949
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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:यह युगों की साधना का
:आज क्या परिणाम है ?
:मैं तुम्हारे रूप का साधक
:जोहता शोभा सदा अपलक,
:पर, गया मिट सुख-सबेरा
::ज़िन्दगी की शाम है !
:स्वप्न में तुमको बुलाया था,
:कक्ष अंतर का सजाया था
:पर, युगों से स्नेह-निर्झर
::बह रहा अविराम है !
:श्रवण आहट पर टिके मेरे,
:नयन-युग पथ पर झुके मेरे,
:पर, नहीं आभास तक का
::आज किंचित नाम है !
:1949
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