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ये आँसू ही मेरा परिचय।
मेरे प्राण! अधूरे सपने!
अब तुम मेरे पास न आओ,
बार-बार मेरे जीवन में
नहीं आस के दीप जलाओ।
मैंने सीख लिया जीवन में-
हँसी-खुशी का करना अभिनय।
चाही थीं कुछ स्वर्णिम साँझें मुझे मिले दुरूस्वप्न दुरूस्वप्न भयंकर, जब सपनों से डरकर जगता सत्य भयावह मिलता बाहर। मैंने अपने ही हाथों से -
सींचा मन में पौधा विषमय।
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