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जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।अविचल।
मौन हैं मेरे अधर औ' औ
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,
है समय तम से घिरा यह
ढल चुका रवि है गगन में।
पर मिटा दो यह हताशा
भर हृदय में आस निर्मल।
प्रश्न - झंझावात मन में मोम-सा गलता हुआ तन,नेह-लपटों में झुलसकर पीर से व्याकुल शलभ-मन। पर अभी भी श्वास जीवित मत करो विश्वास निर्बल। ये भयावह रात काली इक न इक दिन टलेग़ीआज ना तो कल टलेगी,
है अभी जो वेदना वह
स्वतः ही मजबूर होंगी। होगी। पूर्ण करने यह तपस्य़ा तपस्याधीर रखकर, रहो निश्चल। जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
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