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Kavita Kosh से
बहुत दूर की बात खींच ले जाती है कवि को ।
ग्रहों, नक्षत्रों ...... सैकड़ों मोड़ों से होती कहानियों की तरह
हाँ और ना के बीच
वह घण्टाघर की ओर से हाथ हिलाता है