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Kavita Kosh से
सब कुछ सर जमीन कर
कमजोर कंधों पर टीके रहे
आक्रोश की भाषा
क्यों बोल रहा है?
एक नवानुभव की परत
खोल रहा है।
और-मैं। -मुक–जी रहा हूँ...
एक-अन्तद्रन्द
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