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Kavita Kosh से
प्यार के दरख्त की छाँव में,
जब कभी सुस्ताना चाहता हूँ,
झड़ जाया करते हैं–पत्ते हैं पत्ते
मिलती है
फिर वही जुड़ाई की तपन।
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