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शैलपुत्री की साधनानव दुर्गा तुमको नमन, करती बारम्बार lतुम मेरा आधार।गिरिजानंदिनि तुमसे ही माँ करोचल रहा, विनती को स्वीकार ।।यह सारा संसार।। जप-तप शिव का कर रहीयह सारा संसार, ब्रह्मचारिणी रूप l तुम्हारी करता पूजा।वनप्रियवासिनि मात का, लगता रूप अनूप ।। तेरे मस्तक चंद्र तुम जैसा है, मुख पर रवि का तेज lमात चंद्रघन्टे करो, तम-बल को निस्तेज ।। कुष्मांडा सुखदायनी, अष्टभुजा का रूप lभक्त सभी हैं मात के, निर्धन हों या भूप ।। माता हैं स्कंद की, पंचम दुर्गा रूप lमाता विद्यावाहिनी, ममता का प्रतिरूप ।। छठा रूप धर कर किया, महिष असुर का नाश lभव्या माँ कात्यायनी, नहीं इस जग में भरो प्रकाश ।।दूजा। असुर रक्त से था कियादे दे मुझको दान, काली ने अभिषेक l पार करवा दो माँ काली की अर्चना, देती सुफल अनेक ।।भव। माँ गौरी सुखदायनी, हरती दुख-संताप lउमा-भवानी नाम से, पूजी जातीं आप ।। सिद्धि-दायिनी कर रही, श्रद्धा से मैं गान l मेरी सारी मुश्किलेंध्यान तुम्हारा करूँ, रूप तेरे हैं माँ कर दो आसान ।।नव।।
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