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|संग्रह= नृशंस पर्खालहरू / गीता त्रिपाठी
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<poem>
जिस्कायौ तिमीले
सरसर बतासलाई
जिस्कायौ तिमीले
धपधप आगोलाई

जुरुक्क उठेर बतासले
आगोको कान फुक्यो
बतास- बतासमात्रै रहेन अब
आगो- आगोमात्रै रहेन अब
हुरी र डँढेलोलाई
अब तिमी कतिबेर जिस्काउन सक्छौ ?

जत्ति घेर्नुछ- घेर
जत्ति अग्ल्याउनुछ- अग्ल्याऊ
अब सुरक्षित छैनौ तिमी
गर्लम्म ढल्दैछन्
तिमीले ठड्याएका
नृशंस पर्खालहरू ।
</poem>
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