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Kavita Kosh से
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।नहीं ।वरदान माँगूँगा नहीं।।नहीं ।।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों खण्डहरों के लिएयह जान लो मैं विश्व की संपत्ति सम्पत्ति चाहूँगा नहीं।नहीं ।वरदान माँगूँगा नहीं।।नहीं ।।
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।नहीं ।वरदान माँगूँगा नहीं।।नहीं ।।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य कर्त्तव्य पथ से किंतु किन्तु भागूँगा नहीं।नहीं ।वरदान माँगूँगा नहीं।।नहीं ।।
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