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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान
}}
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<poem>
बहुत-से तूफ़ानों को
देखा मैंने
तोड़ते हुए दम
क़लम की नोक पर
आज भी देखा
एक तूफ़ान
मरा पड़ा धरती पर
काग़ज़ बन गया
क़फ़न जिसका..!
</poem>
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|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान
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बहुत-से तूफ़ानों को
देखा मैंने
तोड़ते हुए दम
क़लम की नोक पर
आज भी देखा
एक तूफ़ान
मरा पड़ा धरती पर
काग़ज़ बन गया
क़फ़न जिसका..!
</poem>