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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सारे दिन
भूखी-प्यासी रहकर
इस बार भी
महकती आँखों से
उसने चाँद देखा मुझमें...
और मैं भी
हमेशा की तरह
अपनी भूख और प्यास से घिरकर
पड़ोस की छतों पर
दमकते चाँद देखता रहा !
</poem>
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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
सारे दिन
भूखी-प्यासी रहकर
इस बार भी
महकती आँखों से
उसने चाँद देखा मुझमें...
और मैं भी
हमेशा की तरह
अपनी भूख और प्यास से घिरकर
पड़ोस की छतों पर
दमकते चाँद देखता रहा !
</poem>