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15:14, 19 मई 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatGhazal}}<poem>बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ,याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ।
बेसन बाँस की सोंधी रोटी खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर खट्टी चटनी जैसी माँ कान धरे,आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ।
याद आता है चौकाचिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-बासनमोहन अली-अली,मुर्गे की आवाज़ से खुलती, चिमटा फुँकनी घर की कुंडी जैसी माँ ।माँ।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,बाँस की खुर्री खाट दिन भर इक रस्सी के ऊपर हर आहट पर कान धरे , चलती नटनी जैसी माँ।
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ । चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली , मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंडी जैसी माँ । बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में , दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ । बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई , फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।माँ।</poem>