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लोकतन्त्र में / नोमान शौक़

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{{KKRachna
|रचनाकार=नोमान शौक़
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कोई दोष नहीं दिया जा सकता<br />
अपनी ही चुनी हुई सरकार को<br />
 
सरकार के पास<br />
धर्म होता है अध्यात्म नहीं<br />
पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहीं<br />
शब्द होते हैं भाव नहीं<br />
योजनाएँ होती हैं प्रतिबध्दता नहीं<br />
शरीर होता है आत्मा नहीं<br />
मुखौटे होते हैं चेहरा नहीं<br />
आँखें होती हैं आँसू नहीं<br />
बस, मौत के आँकडे होते हैं<br />
मौत की भयावहता नहीं<br />
 
सब कुछ होते हुए<br />
कुछ भी नहीं होता<br />
सरकार के पास !<br />