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शायरी की मौत / नोमान शौक़

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कितना ख़ुन बह गया है<br />
कविता की कटी हुई नसों से<br />
गन्दी नालियों में गिर गए हैं<br />
कितने ही ऊंचे विचार<br />
शब्द मुर्छित पड़े हैं<br />
औेंधे मुंह फ़र्श पर<br />
कैसी कैसी उपमाएं<br />
कराह रही हैं<br />
काग़ज़ के एक कोने से दबी<br />
कितने बिम्ब टूटे पड़े हैं<br />
टूटी हुई मेज़ के नीचे<br />
कल्पना झूल रही है पंखे से<br />
गले में फंदा डाले<br />

मैंने पहली बार देखा है<br />
इतना भयानक सपना !<br />
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