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06:16, 6 जून 2020
* [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रा सुधा गुप्ता }}<poem>'''1-सिसकी,प्यास''' बहुत देर रो-रोकर हलकान हो- होकरसो जाए कोई बच्चा काँधे लगकरतो नींद में जैसे बार-बारउसे इसकी आती हैऐसेमुझे तेरी याद आती हैबहुत देर रो-रोकरहलकान हो-होकर ।-0-'''2-प्यास''' एक दिन भी अपनी मर्ज़ी का न जियाएक मैं ही रही प्यासीऔर सबनेभर-भर प्यालाछककर पिया। होगा किसी मुट्ठी में चाँदकिसी में सूरज,मैंने तो साँस-साँसबस ज़िन्दगी का कर्ज़चुकता किया।एक दिन भीअपनी मर्ज़ी का न जिया।-0-'''3-लड़ाई''' शीशे परआती है गौरैयाबार-बारमारती है चोंचएक बार-दास बार-सौ बारहज़ार बार ।ख़ुद पर करती प्रहार-ख़ुद से होती घायल गौरैया अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगीखुद से लरते , चोट खाते बीतती है।-0- '''4-अँधेरी सुरंग''' कितने दिन हुए तुमसे बिछुड़े कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?सोचती हूँपर कुछ याद नहीं आता । एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही गूँजाने कब से !गुज़रूँगीजाने कब तक !! कहीं रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !-0- </ सुधा गुप्ता ]]poem>