भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी खुशबू ख़ुशबू भी मर न जाय जाये कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
अक़्ल कोई सजा़ है या ईनाम
बारहा सोचना पडा़ पड़ा मुझको
हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
कोई मेरा मरज़ मरज तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको